छठ पूजा इष्ट उपासना के साथ साथ प्रकृति से जुड़ने का संदेश ।
छठ पूजन धर्म आस्था का महान पर्व है ।
जिसमें अपने इष्ट की आराधना के साथ साथ प्रकृति की उपासना भी होती है । भगवान सूर्य को अर्ध दिया जाता है । जो भगवान
सूर्य जगत के साक्षात् देवता है । यदि भगवान सूर्य उदय ना हो तो मानव जाति संकट में आ सकती है । खाद्यान्न का संकट हो सकता है । इसीलिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है ।
क्या है छठ पूजा की कथा
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक लंका के राजा रावण का वध करने के बाद श्री राम जब पहली बार अयोध्या पहुंचे थे। उसे समय भगवान राम और माता सीता ने राम राज्य की स्थापना के लिए छठ का उपवास रखा था । उस समय सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी । पुरानी मान्यताओं के अनुसार छठ व्रत की शुरुआत द्रोपदी से हमारी जाती है ।
नहाए खाए का पर्व
आज पूजा का प्रथम दिन नहाय खाय से प्रारंभ होता हैं। व्रती नदी घाटों तालाबों और अन्य जलाशयों में स्नान करेंगी इसके बाद खाने का प्रचलन है । स्नान के बाद अरबा चावल चना दाल और कद्दू की सब्जी खाने का प्रचलन है । बाद में परिवार के सभी सदस्य भी इसे ग्रहण करते है । इसका खास महत्व होता है । कुल मिलकर इस दिन ऐसा भोजन ग्रहण किया जाता है । जो प्रकृति से जुड़ा होता है । जैसे मौसमी फल और सब्जियां ग्रहण करते है । जिसका आयुर्वेद से गहरा नाता है इस 4 दिनों में जो वह व्यक्ति स्वस्थ रहेंगे । कफ पित्त वात संतुलित रहेगा ।
दूसरे दिन खरना होता है
इस दिन व्रती इस दिन राती पूरे दिन निर्जला रहती है शाम को गाने के रस से तैयार अच्छा से करना में रसिया या खीर बनती है। इसे व्रती पूजा करने के बाद ग्रहण करती है। इसमें घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में अर्पित करती है । व्रती के बाद इसे परिवार के अन्य सदस्य भी ग्रहण करते हैं । इस तरह पर्व का दूसरा दिन पूरा होता है।
तीसरा दिन आरोग्य की कामना
चार दिवसीय अनुष्ठान के तीसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल सृष्टि को संध्याकालीन अर्ध दिया जाता है । इसके लिए विशेष रूप से ठेकुआ तैयार किया जाता है ।प्रसाद तैयार हो जाने के बाद इसे बास के सूप पर टोकरी में फल के साथ सजाया जाता है । इसकी पूजा होती है । इसके बाद पास के जलाशय में जाकर स्नान कर अस्ताचलगामी भगवान
भास्कर को अर्द्ध दिया जाता है ।जिसके व्यक्तित्व कल्याण के साथ ही संसार के उत्थान की कामना की जाती है । रोचक की है की पूजा होने के बाद भी दिन को प्रसाद नहीं खाया जाता ।
अंतिम दिवस उगते सूर्य की पूजा और स्वस्थ कामना
इसके बाद अनुष्ठान के अंतिम दिवस यानी सप्तमी की सुबह सूर्य उदय के समय भगवान सूर्य को अर्थ देने का विधान है। स्नान कर पानी में खड़ा होकर भगवान सूर्य को ध्यान करते हुए आरोग्य की कामना की जाती है ।और यह पर्व पूर्ण होता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भगवान सूर्य की पूजा पानी में खड़े रहकर करनी होती है । और भगवान सूर्य से आरोग्य की मंगल कामना की जाती है । अंत में भक्तों को प्रसाद बांटने के बाद व्रती महिलाएं सामान्य भोजन करती है।
