प्राण प्रतिष्ठा का वैज्ञानिक महत्व क्या हैं?

प्रश्न:-प्राण प्रतिष्ठा का वैज्ञानिक महत्व क्या हैं?
उत्तर:-पंचमहाभूत-पृथ्वी,जल,तेज,वायु और आकाश से शरीर बनता हैं। पंचमहाभूत के गुण क्रमशः गंध, रस,रूप, स्पर्श और शब्द हैं। पाषाण से निर्मित मूर्ति में जो जल का अंश विद्यमान होता हैं-वह पार्थिव जल हैं।

मूर्ति का पंचतत्व क्या है ?
मूर्ति को छूने पर जो कठोरता का अनुभव होता हैं-वह स्पर्श(वायु का गुण)हैं। प्रतिध्वनि (Sound Reflector Property) जो होती हैं-वह शब्द(आकाश का गुण)हैं। मूर्ति का श्याम या शुक्ल वर्ण होना- रूप(अग्नि का गुण)हैं। दर्शन करने पर जो शांति, ठंडक,आंनद (आह्लाद) प्राप्त होता हैं वही रस(जल का गुण) हैं। धूप आदि की गंध ही गंध तत्व (पृथ्वी का गुण)को प्रकट करती हैं।

मंत्र विज्ञान से प्रतिष्ठा
(sedimentary water and air)को मंत्र विज्ञान के द्वारा स्थिर करना (प्रतिष्ठित करना) ही प्राण प्रतिष्ठा कहलाता हैं।
जिसमें दो विषय-वस्तु का होना आवश्यक हैं-

गौमाता के पंचगव्य से प्रतिष्ठा

गौमाता से प्राप्त पंचगव्य और ब्राह्मण के मुख से उच्चारित वेद मंत्र
प्राण प्रतिष्ठित होने के बाद मूर्ति में चेतना बनाए रखने (Good conductor)के लिए पंचोपचार मुख्य हैं-

तत्वों में पंचतत्व
स्नान (जल तत्व), चंवर डुलाना( वायु) शंख-घंटनाद(आकाश तत्व), दीप आरती(अग्नि तत्व) व चंदन लेपन तथा धूप आरती(पृथ्वी तत्व)।
संदर्भ:- अग्नि पुराण अध्याय ६१, ज्योति प्रकाश शास्त्री शिष्य पूज्य गुरुदेव श्री गोपाल मणि जी महाराज भारतीय गोक्रांती मंच हिमाचल प्रदेश।
।।जय श्री राम।।

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